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Gitakriyapadani (Hindi) By H.Bh.P. Acharya Shri Sandeep Maharaj

Gitakriyapadani (Hindi) By H.Bh.P. Acharya Shri Sandeep Maharaj

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वास्तव में संस्कृत व्याकरण के अध्ययन के बिना ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ ग्रंथ को समझना बहुत कठिन है । ग्रंथ का सरल अर्थ समझने के लिए भी प्रत्येक श्लोक में आने वाले हर एक शब्द का स्वरूप समझना अत्यंत आवश्यक है । सामान्यतः किसी भी वाक्य में आने वाले शब्द - कर्ता, कर्म, करण, क्रियापद, अव्यय आदि रूप के होते हैं । इसमें ‘क्रियापद’ यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है । क्योंकि, इस ‘क्रियापद’ के आधार पर ही कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि बातें होती हैं । श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोकों में भी हमें क्रियापद मिलते हैं । श्लोक का केवल साधारण अर्थ ना देखकर; व्याकरण की दृष्टि से क्रियापदों का विचार करके, श्रीमद् भगवद् गीता का अध्ययन अधिक फलदायी बनाने के उद्देश्य से इस ‘गीताक्रियापदानि’ पुस्तक का निर्माण किया गया है । इस विषय पर समाज में उपलब्ध अन्य पुस्तकों की तुलना में इस पुस्तक में अधिक जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है ।


संस्कृत व्याकरण में प्रवेश करने की उम्मीद रखनेवाले, श्रीमद् भगवद् गीता का अध्ययन व्याकरण की दृष्टि से करनेवाले, इस ग्रंथद्वारा संस्कृत व्याकरण को पढ़नेवाले विद्यालयीन और महाविद्यालयीन विद्यार्थी तथा शिक्षकजन आदि लोगों के लिए यह पुस्तक सहायक हो सकती है।

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